मांसाहार करने वाले बीमार होकर जल्दी क्यूं मरते हैं ???
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मांसाहार मनुष्य को हिंसक बनाता है, साथ ही साथ मनुष्य की विवेक शक्ति को मांस क्षीण कर देता है।
मांस को आप खुले में छोड़ दें थोड़ी ही देर में उसमें बदबू आने लगती है और उसमें तेजी से कीड़े पनपने लगते हैं।
बैक्टीरिया - वायरस मांस के भीतर तेजी से पनपते हैं -----
मांस खाने वाले व्यक्ति के भीतर आंतों में मांस सड़ने लगता है और उसकी आंतों के भीतर अनेक तरह के अनचाहे जीवाणु पनपने लगते हैं , चूंकि मनुष्य के शरीर के पाचन तंत्र की बनावट शाकाहारी पशुओं की तरह है, इसलिए मनुष्य के शरीर में बीमारी और रोग के बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं, इसीलिए डाक्टर अस्पतालों में मांस खाने की छूट मरीजों को नहीं देते, मांस खाने वालों के शरीर में बीमारी से लडने की क्षमता आधी रह जाती है, अतः बीमार अवस्था में मांस खाने के लिए डाक्टर सदैव मना करते हैं।
श्वास की समस्यायों से पीड़ित अधिकांश लोगों के लिए तो अंडा भी बहुत घातक है।
अतः मांसाहार से सावधान रहें और लम्बा जीवन जीएं।
बूचड़खानों में जितना भी जानवरों का मांस होता है, उन में से अधिकांश जानवरों को बहुत ही भयंकर बीमारियां रहती हैं !
बूचड़खानों के जानवरों को मिर्गी
खुरपका -- त्वचा रोग और अनेक बैक्टीरिया संबंधित रोग लगे रहते हैं ---
बूचड़खानों के मांस को घर में लाते ही घर में बैक्टीरिया घूमने लगते हैं और लोगों के बीमार होने की गति बढ़ जाती है --
विचार करें कि मरे हुए आदमी को आप घर में ज्यादा देर नहीं रख सकते क्योंकि उसके शरीर से बहुत दुर्गंध आने लगती है और बूचड़ खाने के मरे जानवर का बीमारी युक्त मांस आप घर पर ला रहें हैं --
१०० में से हर 90 आदमी आपको बीमार वहीं मिलेंगे जो मांसाहार करते हैं।
जिन घरों में मांसाहार अधिक होता है वहां आपको सदैव कोई ना कोई बीमार अवश्य दिखेगा।
मांसाहार ---
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श्रावण महीने में मांसाहार करने से मनुष्य महापाप का भागी बनता है।
भाद्रपद महीने में मांसाहार करने वाले के कुटुंब में लोगों को रोग लगते हैं।
श्राद्ध -के समय मांस का सेवन करने से पित्र दु:खी होते हैं और व्यक्ति के यहां विकलांग संताने पैदा होती है।
पूर्णिमा देवताओं की होती है।
अमावस्या पित्रों की होती है।
पूर्णिमा में मांसाहार करने से बुद्धि का क्षय होता है।
अमावस्या में मांसाहार करने से कुटुंब का क्षय होता है।
नवरात्रि -- शक्ति की उपासना का पर्व है नवरात्रि में मांसाहार करने से बल क्षीण होता है।
दीपावली में मांसाहार करने से लक्ष्म घटती है।
होली में मांसाहार और मदिरा पान से घर में सभी दु:खी होते हैं।
१६ संस्कारों में विवाह भी बहुत पवित्र संस्कार होता है जहां विवाह में मांस खाया जाता है, उस कुटुंब में सदस्यों की संख्या कम होने लगती है और कुंटुब के सदस्यों का आपस में मतभेद होने लगता है !
विवाह में मांस का भोग जिस ग्राम या क्षेत्र में किया जाता है वहां धीरे-धीरे अकाल पडता है और अन्न की उपज कम होती है।
मांसाहार से बचकर रहें ।
मांस खाने वाले विचार करें ---
बैक्टीरिया और वायरस युक्त बीमारी से ग्रसित मुर्गे का मांस आप ३०० रु किलो घर में लाते हो।
और पाप के भागी बनते हो अपने घर में बीमारी लाते हो----
३०० रुपये में तो
तीन दिन के लिए घर की सब्जियां आ जाती है और तीन समय खा लेते हो।
मांस खाने से आपको पाप तो लगेगा ही साथ ही आपकी आर्थिक स्थिति भी बिगड़ती है।
बवासीर के 95% मरीज मांस खाने वाले ही मिलेंगे।
चाहे तो अपने आसपास का आंकडा उठाकर देख लें।
बंगाल में मछली सबसे अधिक खाई जाती है और हर चौराहे पर वहां बवासीर का डाक्टर मिलेगा।
बंगाली चांदसी क्लीनिक।
मांस का त्याग करें मांसाहार अनुचित है।
१--मनुष्य की आंखे शाकाहारी प्राणियों जैसी होती है।
२--मनुष्य की आंत शाकाहारी प्राणियों जैसी होती है।
३--मनुष्य के दांतों की रचना भी शाकाहारी प्राणियों जैसी होती है।
४-- मनुष्य के नाखून और पंजे भी शाकाहारी प्राणियों जैसे होते हैं।
५-- मनुष्य की जीभ की रचना शाकाहारी प्राणियों जैसी होती है।
किंतु जो मनुष्य फिर भी मांसाहार कर रहा है वो एक तरह से महाघोर पाप ही कर रहा है।
जो मनुष्य जिस जीव का मांस खाता है, वह मनुष्य अगले जन्म में उसी जीव के योनि में जाकर और मारे जाकर खाया जाता है।
जो मनुष्य मांसाहार त्याग दे समझो उसने जन्म मरण का बंधन त्याग दिया और ८४ लाख योनि चक्र से बाहर वह हो गया।
शाकाहार की अपेक्षा मांसाहार करने से २०० गुना अधिक पाप लग जाता है।
महापापी आत्माएं सबसे पहले शाक के रूप में ही जन्म लेती हैं, इसलिए शाकाहार करने से पाप नहीं लगता, जैसे जैसे उत्तरोत्तर जीवात्मा मनुष्य बनती जाती है वैसे वैसे उसके पुण्य बढने लगते हैं।
इसलिए मांसाहार करने पर पाप बढने लगते हैं।
मांसाहार सबसे बडा महापाप माना जाता है ।
मांसाहार करने वाले की इंद्रियां उसके वश में नहीं होती।
राक्षसों ने जितने भी वरदान ब्रह्मा और शिव से प्राप्त किये वो सभी मांसाहार - मदिरा के त्याग और घोर तप से प्राप्त किये थे।
किंतु जब वे मांस - मद्य - मदिरा और काम के अधीन हुए उनका पतन हो गया।
मांसाहारियों की विशेषता:---
नुकीले दांत :--
नुकीली चोंच:--
लटकती जीभ :---
नुकीले नाखून :--
गोल आंखे :---
खुरदरी जीभ :--
चार से अधिक थन :---
रात्रि में छिपकर हमला करने की प्रवृत्ति:--
यदि आपके भीतर भी एसे गुण हैं तो आप मांस का सेवन कर सकते हैं, और यदि नहीं हैं तो समझ लें कि आप मांस नहीं अपितु पाप खा रहें हैं और आप महान नर्क के भागी बनेगे आपकी संतानों को इसका फल मिलेगा और आए दिन आपके परिवार में बीमारियां लगी रहेंगी।
मांसाहार के विषय में पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को जो जो बातें तीरों की शैय्या में पड़े रहकर बताई वह सभी ध्यानपूर्वक पढें :-----
मांस का अर्थ होता है, कि आज जिस प्राणि को मैं खा रहा हूं , वह कल मुझे खाएगा , यही मांस का मांसत्व है!
बिना मांसाहार का त्याग किये बिना यह आत्मा जन्म मृत्यु के चक्रव्यूह से मुक्त नहीं हो पाती।
इस जन्म में जो जीव मारा जाता है, उसने भी पूर्व जन्म में किसी जीव का वध किया किंतु जो मनुष्य योनि जीवात्मा मांस और शिकार का त्याग करता है,वह जन्म मरण बंधन से मुक्त हो जाता है, और अगले जन्म में वह दूसरे के द्वारा नही खाया जाता।
मांसाहार ना करना -- दान देने और १०० वर्ष तक तपस्या करने से भी अधिक श्रेष्ठ है!
मांसाहार ना करना या शिकार ना खेलना यह सबसे बड़ा अहिंसा का व्रत है!
मांसाहार ना करने वाले व्यक्ति को मनुष्य योनि पुनः शीघ्र प्राप्त होती है।
अहिंसा धर्म -- सब धर्मों से श्रेष्ठ है, किंतु धर्म की रक्षा के लिए हिंसा श्रेष्ठ धर्म है!
हिंसा का अधिक दोष घात करने अथवा पशु का वध करने वाले मनुष्य को लगता है, किंतु मांस खाने वाला भी उस पाप का भागी बनता है।
मांसाहार से रोग बढते हैं!
मांसाहार से आयु क्षीण होती है!
मांसाहार से भावी संतान दु:खी होती है!
मांसाहार से कुरुपता आने लगती है!
मांस खाकर अपना मांस बढाने वाले से बढकर नीच और निर्दयी कोई नहीं!
मांस- भक्षण करने से महान पाप लगता है!
मांसाहार करने वाले से सभी पशु-पक्षी भयभीत रहते हैं!
मांसाहार करने से धर्म की प्राप्ति नहीं होती!
मांसाहार करने वाला यदि मांस त्याग दे तो उसकी कीर्ति और यश बढने लगता है, और उसके रोगों का क्षय होता है।
मांसाहार को यदि मनुष्य छोड दें तो अहिंसा व्रत का पालन होने से धर्म की वृद्धि होगी!
जो दूसरों को मांस खाने के लिए प्रेरित करता है वह भी दोषी माना जाता है, और उसे भी मांस खाने के बराबर पाप लगता है!
मांस के लिए पशु लाने वाला ;
उसकी हत्या के लिए प्रेरित करने वाला;
पशु हत्या करने वाला;
खाने वाला ;
यह चारों को मांसाहार का पाप लगता है ।
निर्बल और अहिंसक पशुओं की हत्या ना करना ही अहिंसा है!
मधु और मांस का त्याग करने वाला श्रेष्ठ अहिंसा व्रत और धर्म का पालन करने वाला होता है।
जिस प्रकार मनुष्य को अपना जीवन और अपने प्राण प्रिय होते हैं, उसी प्रकार वध किये जाने वाले पशु को भी अपने प्राण प्रिय होते हैं।
मांस खाने वाला यदि मांस का त्याग कर दे तो उसे दान यज्ञ और तपस्या का फल प्राप्त होने लगता है और धर्म में उसकी स्थिति प्रबल हो जाती है।
अहिंसा धर्म में सभी धर्मों का समावेश होता है।
दया का धर्म - प्रेम का धर्म - मातृत्व का धर्म
कल्याण का धर्म - क्रोध ना करने का धर्मआदि धर्मों का संगम अहिंसा का ही धर्म है।
मांसाहार का त्याग करने वाला शूद्र भी अहिंसा के व्रत से ब्राह्मण के तुल्य हो जाता है।
अहिंसा से होने वाले लाभ का सौ वर्ष में भी वर्णन नहीं किया जा सकता !
शांति पर्व ( महाभारत )
मांसाहार या शाकाहार !!
अनेक शास्त्रों -- अनेक ग्रंथों और दुनिया के सभी बुद्धिजीवियों की दृष्टि में मांसाहार की अपेक्षा शाकाहार ही मनुष्य के लिए सर्वोत्तम है!
अनेक ऋषियों और विद्वान पुरुषों तथा वैज्ञानिक तथ्यों के मंथन के द्वारा यह सिद्ध हो चुका है, कि मनुष्य के लिए मांसाहार ही अपेक्षा शाकाहार ही सर्वोत्तम भोजन है और मनुष्य को मांस का त्याग कर देना चाहिए!
बीमार व्यक्तियों के दो भागों में बांटा गया और एक गुरुप को भोजन में मांस दिया गया तथा दूसरे गुरुप को शाकाहार दिया गया मांस खाने वाली टोली की अपेक्षा शाकाहारी बहुत तेजी से ठीक हुए और मांस खाने वालों में बहुत से लोगों की स्थिति में सुधार आने के बजाय उनकी बीमारी और बढ गयी !
मांसाहार करने वाले व्यक्तियों की तुलना में शाकाहारी व्यक्ति मानसिक रूप से अधिक संतुलित रहता है।
१००० से अधिक परिवारों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चला है, कि जिन घरों में शाकाहारी भोजन किया जाता है वहां मांस खाने वाले घरों की तुलना में लोग बीमार कम होते हैं, और घर में शांति का वातावरण भी बना रहता है।
वेद -- १८ पुराण -- उपनिषद और महाभारत के सूक्ष्म अध्ययन करने वाले विद्धानों ने सभी में यही पाया है कि मांसाहार से व्यक्ति का पतन होता है और मनुष्य आहिंसा धर्म से दूर होकर पतित हो जाता है।
मनुस्मृति में मनुष्य के लिए मांसाहार को पाप का मूल कारण बताया गया है।
मांसाहारी बने अथवा शाकाहारी इसमें अधिक सोचने की आवश्यकता नहीं है।
मांसाहार का त्याग करने से धर्म के चार गुण दया - अहिंसा - प्रेम - क्षमा इनकी वृद्धि हो जाती है और क्रो़ध भी नियंत्रण में आ जाता है।
मांसाहारी व्यक्ति की अपेक्षा शाकाहारी व्यक्ति के भीतर धन संचय की प्रवृत्ति तीन गुना अधिक होती है।
भारत में अधिकांश धनवान व्यक्तियों में ७०% लोग शाकाहारी हैं।
शेष २५% लोग एसे हैं जिनके जीवन में मांस का से
मदिरा या शराब :---
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मदिरा मनुष्य का सर्वनाश कर देती है।
१-- शराब मनुष्य के लिए हानिकारक है।
२-- शराब, शराबी का सत्यानाश कर देती है।
३-- दुर्घटना का ७०% कारण शराब या नशा है।
४-- शराब पीने वाले का परिवार दु:खी रहता है।
५-- अधिकांश शराबी पागलखानों में मिलेंगे।
६-- शराब मति को दुर्मति बना देती है।
७-- लीवर के अधिकांश मरीज शराब के ही हैं।
८-- ब्रेन स्ट्रोक का खतरा शराब पीने से दो गुना बढ जाता है।
९-- कोरोनो में अधिकांश मरने वाले वो लोग थे जो किसी ना किसी रूप में शराब पीते थे।
१०-- शराबी का जीवन उजाड और विरान होता है।
११-- शराबी के यार दोस्त उसके साथ केवल तब तक रहते हैं, जब तक वह उनको शराब पिलाता है।
१२-- शराबी के बच्चों की भी शराबी बननें की संभावनाएं ८०% तक बढ जाती हैं।
१३-- अधिकतर शराबियों की पत्नियां मानसिक रूप से दु:खी रहती है।
१४-- शराबी की पत्नी कभी भी पति से खुश नहीं रहती।
१५--शराब कुल - वंश का नाश और पित्रों को दु:ख देने वाली होती है।
१६- शराब को सही बताने वाले लोग मूर्खों की श्रेणी में गिने जाते हैं।
१७-- शराब का बिजनेस करने वाले अधिकांश लोगों का परिवार में भविष्य में कष्ट हो जाता है, क्योंकि उन पर बहुतों की बद दुआएं लग जाती है।
१८--शराब - सडे हुए अनाज पर बुजबुजाते कीडों की टट्टी और मल से तैयार होती है, इसलिए शराबी की मृत्यु के बाद शराब के कीडों के रूप में उसके जन्म लेने की संभावनाएं बन जाती है।
१९-- शराबी केवल दिखावे के लिए खुश रहता है और भीतर ही भीतर कुढता रहता है।
२०-- शराब केवल और केवल शराब का गुलाम होता है, और उसी गुलामी में लोगों को अपना अहंकार और बड़प्पन दिखाते हुए वह मर जाता है।
२१-- शराबियों की औसत आयु ५५% होती है यह अन्तर्राष्ट्रीय सर्वे बताता है।
२२-- शराबी मानसिक रूप से कुंठित होता है।
२३ -- शराबी के भीतर विचार शक्ति और मानसिक निर्णय लेने की क्षमता बहुत कम होती है।
२४-- शराबी मानसिक रूप से अनिश्चित होते हैं और नशे में डींगे हांकने के अलावा वे कुछ नहीं कर सकते।



शराब - सडे हुए अनाज पर बुजबुजाते कीडों की टट्टी और मल से तैयार होती है, इसलिए शराबी की मृत्यु के बाद शराब के कीडों के रूप में उसके जन्म लेने की संभावनाएं बन जाती है।
ReplyDeleteशराबी केवल दिखावे के लिए खुश रहता है और भीतर ही भीतर कुढता रहता है।
शराब केवल और केवल शराब का गुलाम होता है, और उसी गुलामी में लोगों को अपना अहंकार और बड़प्पन दिखाते हुए वह मर जाता है।
शराबियों की औसत आयु ५५% होती है यह अन्तर्राष्ट्रीय सर्वे बताता है।
शराबी मानसिक रूप से कुंठित होता है।